यूपी का वह मुख्‍यमंत्री, जिसने चेक देकर चुकाया सवा छह रुपये का कर्ज

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लखनऊ: यूपी में विधानसभा चुनाव का आज दूसरा चरण है। 9 जिलों की 55 विधानसभा सीटों पर मतदान होना है। इनमें से अधिकतर सीटें पश्चिमी यूपी की है। पश्चिमी यूपी की राजनीति चौधरी चरण सिंह के जिक्र के बिना पूरी नहीं होती। चौधरी चरण सिंह देश के ऐसे नेता थे जो कई मायनों में अनूठे थे। वह यूपी के मुख्‍यमंत्री पद से लेकर देश के प्रधानमंत्री तक बने लेकिन अपना देशज अंदाज नहीं छोड़ा… समाज के सबसे निचले पायदान पर रहने वाले शख्‍स को खुद से दूर नहीं होने दिया… सिद्धांत के लिए अपनों से लड़ने में भी पीछे नहीं हटे। व्‍यक्तिगत जीवन में वह ज‍ितने सख्‍त दिखते थे उनका जीवन उतनी ही सादगी से ओतप्रोत और सरल था।

उनके जीवन की एक घटना का जिक्र चरण सिंह अभिलेखागार में मिलता है जिसे हर्ष सिंह लोहित ने संग्रहित किया है। यह वाकया सन 1967 का है जब चरण सिंह यूपी के सीएम बने थे। एक रोज वह दौरे पर हरिद्वार पहुंचे। हरिद्वार तब अविभक्‍त यूपी का ही हिस्‍सा था। वह किसी कारणवश निर्धारित समय से लेट हो गए। रात को उनके रुकने की व्‍यवस्‍था गंगा किनारे बने सर्किट हाउस में की गई। उसके ठीक बगल में था डैम बंगलो।

चौधरी साहब का व्रत
डैम बंगलो रेजिडेंट मैजिस्‍ट्रेट का सरकारी आवास होता था। उस समय वहां के रेजिडेंट मैजिस्‍ट्रेट थे चंद्रशेखर द्विवेदी। चौधरी चरण सिंह रात को पहुंचे उनके खाने-पीने का इंतजाम किया गया। लेकिन चौधरी साहब ने यह कहकर खाना लौटा दिया कि उनका व्रत है इसलिए यह सब नहीं खा सकते।

रेजिडेंट मैजिस्‍ट्रेट ने भ‍िजवाया भोजन
भोजन के लिए मना करके चौधरी साहब बिस्‍तर पर लेटे थे, रात करीब 12 साढ़े बारह का वक्‍त था। अचानक किसी ने कमरे का दरवाजा खटखटाया। देखा तो बाहर एक सरकारी मुलाजिम खड़ा था। उसके हाथ में कुछ फल और गर्मागर्म दूध था। मुलाजिम ने बताया कि रेजिडेंट मैजिस्‍ट्रेट साहब ने व्रत का भोजन भिजवाया है।
Kahani Uttar Pradesh ki: यूपी के वह सीएम जिनकी इकलौती शेरवानी खो गई तब जाकर दूसरी खरीदने को राजी हुए
कुछ सोचकर चौधरी साहब ने वह भोजन स्‍वीकार कर लिया। अगले दिन चौधरी साहब इलाके के अफसरों से मिलने में व्‍यस्‍त रहे, पार्टी के कार्यकर्ताओं से बातचीत और कार्यक्रम में उनका समय निकल गया। इस तरह दो दिन चौधरी साहब हरिद्वार में रहे। दो दिन बाद चौधरी चरण सिंह हरिद्वार स्‍टेशन पर ट्रेन के फर्स्‍ट क्‍लास डिब्‍बे में बैठ गए। ट्रेन चलने वाली थी कि उससे पहले उन्‍होंने संदेश भिजवाया कि वह रेजिडेंट मैजिस्‍ट्रेट से मिलना चाहते हैं। रेजिडेंट मैजिस्‍ट्रेट चंद्रशेखर द्विवेदी उनके पास पहुंचे।

6 रुपये 25 पैसे का चेक
उस समय चौधरी साहब डिब्‍बे में अकेले थे। उन्‍होंने अपनी शेरवानी की जेब से एक चेक निकाला। उस पर 6 रुपये 25 पैसे लिखे हुए थे। चौधरी चरण सिंह ने उस पर चंद्रशेखर द्विवेदी का नाम लिखकर उन्‍हें पकड़ा दिया और बोले आरएम साहब यह रख लीजिए।

चंद्रशेखर द्विवेदी समझ नहीं पाए कि आखिर यह है क्‍या। उनकी असमंजस चौधरी साहब भांप गए और बोले अरे भाई उस दिन मैं आया था और रात को डाक बंगले में रुका था। मेरा व्रत था उसके लिए आपने फल और दूध भेजे थे। मैंने पता करवाया कि उनका मूल्‍य 6 रुपये 25 पैसे हुए। यह चेक उन्‍हीं का है।

रेजिडेंट मैजिस्‍ट्रेट ने चौधरी साहब को यह कहकर रोकने की कोशिश की कि यह तो हमारा फर्ज था लेकिन चौधरी साहब नहीं माने। वह बोले- आपने मेरे व्रत की अहम‍ियत समझी और इतनी रात को भोजन का इंतजाम किया इसलिए आपको तो यह लेना ही होगा।’ रेजिडेंट मैजिस्‍ट्रेट द्विवेदी ज्‍यादा कुछ नहीं कह पाए और चुपचाप चेक को जेब में रखकर चले आए। उनके बेटे गौरव द्विवेदी का कहना है कि उनके पिता ने उस चेक को कैश नहीं कराया बल्कि यादगार के तौर पर हमेशा अपने पास रखा।

तो यह कहानी थी ऐसे जन नायक की जिसने एक छोटे से अफसर का सिर्फ फल और दूध खाया लेकिन उसका पैसा वापस कर दिया। जब अरबों के घोटाले और उनमें फंसे राजनेताओं के नाम उजागर होते हैं तब चौधरी चरण सिंह और उनकी पीढ़ी के नेताओं की याद ताजा हो जाती है।


लखनऊ: यूपी में विधानसभा चुनाव का आज दूसरा चरण है। 9 जिलों की 55 विधानसभा सीटों पर मतदान होना है। इनमें से अधिकतर सीटें पश्चिमी यूपी की है। पश्चिमी यूपी की राजनीति चौधरी चरण सिंह के जिक्र के बिना पूरी नहीं होती। चौधरी चरण सिंह देश के ऐसे नेता थे जो कई मायनों में अनूठे थे। वह यूपी के मुख्‍यमंत्री पद से लेकर देश के प्रधानमंत्री तक बने लेकिन अपना देशज अंदाज नहीं छोड़ा… समाज के सबसे निचले पायदान पर रहने वाले शख्‍स को खुद से दूर नहीं होने दिया… सिद्धांत के लिए अपनों से लड़ने में भी पीछे नहीं हटे। व्‍यक्तिगत जीवन में वह ज‍ितने सख्‍त दिखते थे उनका जीवन उतनी ही सादगी से ओतप्रोत और सरल था।उनके जीवन की एक घटना का जिक्र चरण सिंह अभिलेखागार में मिलता है जिसे हर्ष सिंह लोहित ने संग्रहित किया है। यह वाकया सन 1967 का है जब चरण सिंह यूपी के सीएम बने थे। एक रोज वह दौरे पर हरिद्वार पहुंचे। हरिद्वार तब अविभक्‍त यूपी का ही हिस्‍सा था। वह किसी कारणवश निर्धारित समय से लेट हो गए। रात को उनके रुकने की व्‍यवस्‍था गंगा किनारे बने सर्किट हाउस में की गई। उसके ठीक बगल में था डैम बंगलो।चौधरी साहब का व्रतडैम बंगलो रेजिडेंट मैजिस्‍ट्रेट का सरकारी आवास होता था। उस समय वहां के रेजिडेंट मैजिस्‍ट्रेट थे चंद्रशेखर द्विवेदी। चौधरी चरण सिंह रात को पहुंचे उनके खाने-पीने का इंतजाम किया गया। लेकिन चौधरी साहब ने यह कहकर खाना लौटा दिया कि उनका व्रत है इसलिए यह सब नहीं खा सकते।रेजिडेंट मैजिस्‍ट्रेट ने भ‍िजवाया भोजनभोजन के लिए मना करके चौधरी साहब बिस्‍तर पर लेटे थे, रात करीब 12 साढ़े बारह का वक्‍त था। अचानक किसी ने कमरे का दरवाजा खटखटाया। देखा तो बाहर एक सरकारी मुलाजिम खड़ा था। उसके हाथ में कुछ फल और गर्मागर्म दूध था। मुलाजिम ने बताया कि रेजिडेंट मैजिस्‍ट्रेट साहब ने व्रत का भोजन भिजवाया है।Kahani Uttar Pradesh ki: यूपी के वह सीएम जिनकी इकलौती शेरवानी खो गई तब जाकर दूसरी खरीदने को राजी हुएकुछ सोचकर चौधरी साहब ने वह भोजन स्‍वीकार कर लिया। अगले दिन चौधरी साहब इलाके के अफसरों से मिलने में व्‍यस्‍त रहे, पार्टी के कार्यकर्ताओं से बातचीत और कार्यक्रम में उनका समय निकल गया। इस तरह दो दिन चौधरी साहब हरिद्वार में रहे। दो दिन बाद चौधरी चरण सिंह हरिद्वार स्‍टेशन पर ट्रेन के फर्स्‍ट क्‍लास डिब्‍बे में बैठ गए। ट्रेन चलने वाली थी कि उससे पहले उन्‍होंने संदेश भिजवाया कि वह रेजिडेंट मैजिस्‍ट्रेट से मिलना चाहते हैं। रेजिडेंट मैजिस्‍ट्रेट चंद्रशेखर द्विवेदी उनके पास पहुंचे।6 रुपये 25 पैसे का चेकउस समय चौधरी साहब डिब्‍बे में अकेले थे। उन्‍होंने अपनी शेरवानी की जेब से एक चेक निकाला। उस पर 6 रुपये 25 पैसे लिखे हुए थे। चौधरी चरण सिंह ने उस पर चंद्रशेखर द्विवेदी का नाम लिखकर उन्‍हें पकड़ा दिया और बोले आरएम साहब यह रख लीजिए।चंद्रशेखर द्विवेदी समझ नहीं पाए कि आखिर यह है क्‍या। उनकी असमंजस चौधरी साहब भांप गए और बोले अरे भाई उस दिन मैं आया था और रात को डाक बंगले में रुका था। मेरा व्रत था उसके लिए आपने फल और दूध भेजे थे। मैंने पता करवाया कि उनका मूल्‍य 6 रुपये 25 पैसे हुए। यह चेक उन्‍हीं का है।रेजिडेंट मैजिस्‍ट्रेट ने चौधरी साहब को यह कहकर रोकने की कोशिश की कि यह तो हमारा फर्ज था लेकिन चौधरी साहब नहीं माने। वह बोले- आपने मेरे व्रत की अहम‍ियत समझी और इतनी रात को भोजन का इंतजाम किया इसलिए आपको तो यह लेना ही होगा।’ रेजिडेंट मैजिस्‍ट्रेट द्विवेदी ज्‍यादा कुछ नहीं कह पाए और चुपचाप चेक को जेब में रखकर चले आए। उनके बेटे गौरव द्विवेदी का कहना है कि उनके पिता ने उस चेक को कैश नहीं कराया बल्कि यादगार के तौर पर हमेशा अपने पास रखा।तो यह कहानी थी ऐसे जन नायक की जिसने एक छोटे से अफसर का सिर्फ फल और दूध खाया लेकिन उसका पैसा वापस कर दिया। जब अरबों के घोटाले और उनमें फंसे राजनेताओं के नाम उजागर होते हैं तब चौधरी चरण सिंह और उनकी पीढ़ी के नेताओं की याद ताजा हो जाती है।

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