वर्ल्ड वुशु चैंपियनशिप की गोल्ड मेडलिस्ट सादिया तारिक:कहा

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नई दिल्ली11 घंटे पहले

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भारतीय वुशु खिलाड़ी सादिया तारिक ने देश के लिए स्वर्ण पदक जीता है। उन्होंने शुक्रवार को रूस की राजधानी मॉसेको में यह सम्मान हालिल किया। श्रीनगर की रहने वाली 15 साल की सादिया पिछले दो साल से जूनियर नेशनल चैंपियन हैं। लेकिन उनका यहां तक का सफर आसान नहीं रहा। उनके पिता को लोग कहते थे कि यह लड़की है, इसे मत खिलाओ। लेकिन सादिया ने उन सबको गलत साबित कर दिखा दिया कि लड़की हूं लड़ सकती हूं। उनकी इस सफलता पर पीएम नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर बधाई दी है।

सादिया ने सबको गलत साबित कर दिखा दिया कि लड़की हूं लड़ सकती हूं।

सादिया ने सबको गलत साबित कर दिखा दिया कि लड़की हूं लड़ सकती हूं।

वुशु एक फाइटिंग गेम है
वुशु एक फाइटिंग गेम है। वुशु खेल एक प्राचीन खेल है, जिसकी शुरुआत चीन में हुई। यह देखने में कुश्ती या मुक्केबाजी जैसा होता है। इसमें ड्रेस में खिलाड़ी हाथों में ग्लव्स और सर पर हेलमेट पहनते हैं, जो मुक्केबाजी जैसा नजर आता है।

तिरंगे के नीचे खेलना बड़े सौभाग्य की बात
मास्को वुशू स्टार्स प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीतकर भारत वापस लौटने पर दिल्ली के आईजीआई एयरपोर्ट पर उनका भव्य स्वागत किया गया। पिता तारिक लोन और परिवार के अन्य सदस्यों और दोस्तों ने उनका स्वागत किया। सादिया ने कहा, तिरंगे के नीचे खेलना बड़े सौभाग्य की बात होती है। श्रीनगर की रहने वाली सादिया ने जूनियर वर्ग के फाइनल में एक स्थानीय खिलाड़ी को हराकर स्वर्ण पदक जीता। चैंपियनशिप में जूनियर और सीनियर इंडिया की टीमें भाग लीं।

मास्को वुशू स्टार्स प्रतियोगिता में जीता स्वर्ण पदक

मास्को वुशू स्टार्स प्रतियोगिता में जीता स्वर्ण पदक

माता-पिता अपने बच्चों को खेलों में भाग लेने को कहें
सादिया तारिक का कहती हैं कि, ‘मैं डॉक्टर या इंजीनियर नहीं बनना चाहती, मेरा सपना ओलंपिक में अपने देश के लिए प्रतिनिधित्व करना और स्वर्ण पदक जीतना है। खेल हमें चिंता, तनाव और अवसाद जैसी मानसिक पीड़ाओं से दूर रखता है। मैं चाहता हूं कि घाटी के सभी माता-पिता अपने बच्चों को खेलों में सक्रिय भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करें। लड़कियां अपनी प्रतिभा दिखा सकें इसके लिए सरकार को उन्हें प्रोत्साहन देना चाहिए और एक मंच प्रदान करना चाहिए।

'मैं डॉक्टर या इंजीनियर नहीं बनना चाहती, मेरा सपना ओलंपिक में अपने देश के लिए प्रतिनिधित्व करना और स्वर्ण पदक जीतना है।

‘मैं डॉक्टर या इंजीनियर नहीं बनना चाहती, मेरा सपना ओलंपिक में अपने देश के लिए प्रतिनिधित्व करना और स्वर्ण पदक जीतना है।

जीत पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दी बधाई
सादिया तारिक को मिली इस जीत पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी बधाई दी। पीएम मोदी ने ट्विटर पर लिखा, ‘मास्को वुशु स्टार्स चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतने पर सादिया तारिक को बधाई। उनकी सफलता कई नवोदित एथलीटों को प्रेरित करेगी। उनके भविष्य के प्रयासों के लिए उन्हें बहुत-बहुत शुभकामनाएं।’

पूर्व खेल मंत्री और 2004 एथेंस ओलिंपिक में सिल्वर मेडल जीतने वाले राजवर्धन सिंह राठौर ने भी तारिक को बधाई दी। उन्होंने लिखा, मास्को वुशु स्टार्स चैंपियनशिप में गोल्ड जीतने पर सादिया तारिक को बधाई। भारत की बेटियां चमकती रहती हैं।

कानून मंत्री किरण रिजिजू ने कहा, सादिया तारिक को शानदार प्रदर्शन और मॉस्को वुशु स्टार्स चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतने पर बधाई। उन्होंने भारत को गौरवान्वित किया! कश्मीर की सादिया तारिक दो बार की जूनियर नेशनल वुशु चैंपियन थीं! भारतीय खेल प्राधिकरण ने नेशनल सेंटर एक्सीलेंस में युवा एशियाई खेलों के सर्वश्रेष्ठ संभावित खिलाड़ियों को नामांकित करने के लिए वुशु एसोसिएशन ऑफ इंडिया की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया है।

कश्मीर में भी खुशी का माहौल
सादिया तारिक की उपलब्धि से जम्मू कश्मीर में खुशी का माहौल है। सादिया के पिता तारिक लोन मीडिया में कैमरामैन हैं। पिता लोन का कहना है कि यह सिर्फ सादिया का ही पदक नहीं है, बल्कि उनका भी है। सादिया जम्मू-कश्मीर के उन पांच वुशु खिलाड़ियों में से एक हैं, जिन्हें दिसंबर में चीन में आयोजित होने वाले युवा एशियाई खेलों के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है।

3 साल की उम्र में उन्होंने ताइक्वांडो क्लास ज्वाइन की थी। उसके बाद इनका मन वूशु खेल में लगा और इन्होंने उसी में अपना करियर बनाने की सोच ली।

3 साल की उम्र में उन्होंने ताइक्वांडो क्लास ज्वाइन की थी। उसके बाद इनका मन वूशु खेल में लगा और इन्होंने उसी में अपना करियर बनाने की सोच ली।

श्रीनगर की रहने वाली है सादिया तारिक
सादिया का जन्म 30 जून, 2006 को श्रीनगर में हुआ था। इनके पिता का नाम तारीक अहमद लोन इंडिया टुडे ग्रुप में कैमरामैन हैं ,और इनकी माता का नाम मायमोना है।

3 साल की उम्र से शुरु की ताइक्वांडो क्लास
इनकी शुरुआती शिक्षा जम्मू कश्मीर से ही हुई । 3 साल की उम्र में उन्होंने ताइक्वांडो क्लास ज्वाइन की थी। उसके बाद इनका मन वूशु खेल में लगा और इन्होंने उसी में अपना करियर बनाने की सोच ली। अभी वे राजबाग श्रीनगर के प्रेजेंटेशन कॉन्वेंट स्कूल में 10 वीं कक्षा में पढ़ती हैं। माता-पिता चाहते थे कि उनकी बेटी एक दिन देश के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेले, इसलिए उन्होंने इसे अपना सपना बना लिया।

कोरोना के कारण रुक गई थी ट्रेनिंग
बीते कुछ सालों में श्रीनगर में पनपे हालातों और कोरोना के कारण उनकी तैयारियां बंद हो गई थीं। वह अकादमी में ट्रेनिंग के लिए नहीं जा पाती थीं। लगा कि वह कभी खेल भी पाएंगी या नहीं, लेकिन माता-पिता, उनकेकोच रमीज और राष्ट्रीय कोच कुलदीप हांडू उनका हौसला बढ़ाते रहे और आज वे स्वर्ण पदक जीत भी चुकी है।

जम्मू-कश्मीर के बच्चे खूब आगे बढ़ें
सादिया के पिता लोन का कहना है कि यह सिर्फ सादिया का ही पदक नहीं है, बल्कि उनका भी है। अब मैं चाहता हूं कि जम्मू-कश्मीर के बच्चे खूब आगे बढ़ें। देश के लिए गोल्ड जीतें और अपने माँ-बाप के साथ साथ देश और राज्य का नाम रोशन करें।

लोग कहते हैं, ये लड़की है, ‘इसे मत खिलाओ’
सादिया के पिता ने बताया कि बेटी के लिए खेल का माहौल बनाना आसान काम नहीं था। सादिया ने जब मुझे कहा था कि पापा मुझे ये गेम खेलना है। तो पहले मुझे अजीब सा लगा, कश्मीर में ऐसा माहौल है कि लड़की खेलने जाए तो लोग कहते हैं – ये लड़की है, इसे मत खिलाओ।

मां-बाप के सपोर्ट से बच्चा आगे बढ़ेगा
लेकिन इन सब बातो से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ने बाला था, क्यूंकि मुझे यकीन था कि अगर मैं सादिया के साथ रहा तो मेरी बेटी आगे जाएगी। जब मां-बाप का सपोर्ट रहेगा तभी बच्चा आगे बढ़ेगा। लड़की के लिए सबसे मुश्किल घर से निकलना होता है। जिसके लिए माँ-बाप का साथ होना बेहद जरूरी हो जाता है।

Hindi NewsWomenSaid It Is A Matter Of Good Fortune To Win The Gold Medal By Playing Under The Tricolorनई दिल्ली11 घंटे पहलेकॉपी लिंकभारतीय वुशु खिलाड़ी सादिया तारिक ने देश के लिए स्वर्ण पदक जीता है। उन्होंने शुक्रवार को रूस की राजधानी मॉसेको में यह सम्मान हालिल किया। श्रीनगर की रहने वाली 15 साल की सादिया पिछले दो साल से जूनियर नेशनल चैंपियन हैं। लेकिन उनका यहां तक का सफर आसान नहीं रहा। उनके पिता को लोग कहते थे कि यह लड़की है, इसे मत खिलाओ। लेकिन सादिया ने उन सबको गलत साबित कर दिखा दिया कि लड़की हूं लड़ सकती हूं। उनकी इस सफलता पर पीएम नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर बधाई दी है।सादिया ने सबको गलत साबित कर दिखा दिया कि लड़की हूं लड़ सकती हूं।वुशु एक फाइटिंग गेम हैवुशु एक फाइटिंग गेम है। वुशु खेल एक प्राचीन खेल है, जिसकी शुरुआत चीन में हुई। यह देखने में कुश्ती या मुक्केबाजी जैसा होता है। इसमें ड्रेस में खिलाड़ी हाथों में ग्लव्स और सर पर हेलमेट पहनते हैं, जो मुक्केबाजी जैसा नजर आता है।तिरंगे के नीचे खेलना बड़े सौभाग्य की बातमास्को वुशू स्टार्स प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीतकर भारत वापस लौटने पर दिल्ली के आईजीआई एयरपोर्ट पर उनका भव्य स्वागत किया गया। पिता तारिक लोन और परिवार के अन्य सदस्यों और दोस्तों ने उनका स्वागत किया। सादिया ने कहा, तिरंगे के नीचे खेलना बड़े सौभाग्य की बात होती है। श्रीनगर की रहने वाली सादिया ने जूनियर वर्ग के फाइनल में एक स्थानीय खिलाड़ी को हराकर स्वर्ण पदक जीता। चैंपियनशिप में जूनियर और सीनियर इंडिया की टीमें भाग लीं।मास्को वुशू स्टार्स प्रतियोगिता में जीता स्वर्ण पदकमाता-पिता अपने बच्चों को खेलों में भाग लेने को कहेंसादिया तारिक का कहती हैं कि, ‘मैं डॉक्टर या इंजीनियर नहीं बनना चाहती, मेरा सपना ओलंपिक में अपने देश के लिए प्रतिनिधित्व करना और स्वर्ण पदक जीतना है। खेल हमें चिंता, तनाव और अवसाद जैसी मानसिक पीड़ाओं से दूर रखता है। मैं चाहता हूं कि घाटी के सभी माता-पिता अपने बच्चों को खेलों में सक्रिय भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करें। लड़कियां अपनी प्रतिभा दिखा सकें इसके लिए सरकार को उन्हें प्रोत्साहन देना चाहिए और एक मंच प्रदान करना चाहिए।’मैं डॉक्टर या इंजीनियर नहीं बनना चाहती, मेरा सपना ओलंपिक में अपने देश के लिए प्रतिनिधित्व करना और स्वर्ण पदक जीतना है।जीत पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दी बधाईसादिया तारिक को मिली इस जीत पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी बधाई दी। पीएम मोदी ने ट्विटर पर लिखा, ‘मास्को वुशु स्टार्स चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतने पर सादिया तारिक को बधाई। उनकी सफलता कई नवोदित एथलीटों को प्रेरित करेगी। उनके भविष्य के प्रयासों के लिए उन्हें बहुत-बहुत शुभकामनाएं।’पूर्व खेल मंत्री और 2004 एथेंस ओलिंपिक में सिल्वर मेडल जीतने वाले राजवर्धन सिंह राठौर ने भी तारिक को बधाई दी। उन्होंने लिखा, मास्को वुशु स्टार्स चैंपियनशिप में गोल्ड जीतने पर सादिया तारिक को बधाई। भारत की बेटियां चमकती रहती हैं।कानून मंत्री किरण रिजिजू ने कहा, सादिया तारिक को शानदार प्रदर्शन और मॉस्को वुशु स्टार्स चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतने पर बधाई। उन्होंने भारत को गौरवान्वित किया! कश्मीर की सादिया तारिक दो बार की जूनियर नेशनल वुशु चैंपियन थीं! भारतीय खेल प्राधिकरण ने नेशनल सेंटर एक्सीलेंस में युवा एशियाई खेलों के सर्वश्रेष्ठ संभावित खिलाड़ियों को नामांकित करने के लिए वुशु एसोसिएशन ऑफ इंडिया की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया है।कश्मीर में भी खुशी का माहौलसादिया तारिक की उपलब्धि से जम्मू कश्मीर में खुशी का माहौल है। सादिया के पिता तारिक लोन मीडिया में कैमरामैन हैं। पिता लोन का कहना है कि यह सिर्फ सादिया का ही पदक नहीं है, बल्कि उनका भी है। सादिया जम्मू-कश्मीर के उन पांच वुशु खिलाड़ियों में से एक हैं, जिन्हें दिसंबर में चीन में आयोजित होने वाले युवा एशियाई खेलों के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है।3 साल की उम्र में उन्होंने ताइक्वांडो क्लास ज्वाइन की थी। उसके बाद इनका मन वूशु खेल में लगा और इन्होंने उसी में अपना करियर बनाने की सोच ली।श्रीनगर की रहने वाली है सादिया तारिकसादिया का जन्म 30 जून, 2006 को श्रीनगर में हुआ था। इनके पिता का नाम तारीक अहमद लोन इंडिया टुडे ग्रुप में कैमरामैन हैं ,और इनकी माता का नाम मायमोना है।3 साल की उम्र से शुरु की ताइक्वांडो क्लासइनकी शुरुआती शिक्षा जम्मू कश्मीर से ही हुई । 3 साल की उम्र में उन्होंने ताइक्वांडो क्लास ज्वाइन की थी। उसके बाद इनका मन वूशु खेल में लगा और इन्होंने उसी में अपना करियर बनाने की सोच ली। अभी वे राजबाग श्रीनगर के प्रेजेंटेशन कॉन्वेंट स्कूल में 10 वीं कक्षा में पढ़ती हैं। माता-पिता चाहते थे कि उनकी बेटी एक दिन देश के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेले, इसलिए उन्होंने इसे अपना सपना बना लिया।कोरोना के कारण रुक गई थी ट्रेनिंगबीते कुछ सालों में श्रीनगर में पनपे हालातों और कोरोना के कारण उनकी तैयारियां बंद हो गई थीं। वह अकादमी में ट्रेनिंग के लिए नहीं जा पाती थीं। लगा कि वह कभी खेल भी पाएंगी या नहीं, लेकिन माता-पिता, उनकेकोच रमीज और राष्ट्रीय कोच कुलदीप हांडू उनका हौसला बढ़ाते रहे और आज वे स्वर्ण पदक जीत भी चुकी है।जम्मू-कश्मीर के बच्चे खूब आगे बढ़ेंसादिया के पिता लोन का कहना है कि यह सिर्फ सादिया का ही पदक नहीं है, बल्कि उनका भी है। अब मैं चाहता हूं कि जम्मू-कश्मीर के बच्चे खूब आगे बढ़ें। देश के लिए गोल्ड जीतें और अपने माँ-बाप के साथ साथ देश और राज्य का नाम रोशन करें।लोग कहते हैं, ये लड़की है, ‘इसे मत खिलाओ’सादिया के पिता ने बताया कि बेटी के लिए खेल का माहौल बनाना आसान काम नहीं था। सादिया ने जब मुझे कहा था कि पापा मुझे ये गेम खेलना है। तो पहले मुझे अजीब सा लगा, कश्मीर में ऐसा माहौल है कि लड़की खेलने जाए तो लोग कहते हैं – ये लड़की है, इसे मत खिलाओ।मां-बाप के सपोर्ट से बच्चा आगे बढ़ेगालेकिन इन सब बातो से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ने बाला था, क्यूंकि मुझे यकीन था कि अगर मैं सादिया के साथ रहा तो मेरी बेटी आगे जाएगी। जब मां-बाप का सपोर्ट रहेगा तभी बच्चा आगे बढ़ेगा। लड़की के लिए सबसे मुश्किल घर से निकलना होता है। जिसके लिए माँ-बाप का साथ होना बेहद जरूरी हो जाता है।

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