अस्तित्व और नेतृत्व संकट से जूझती कांग्रेस की होने वाली सर्जरी? गुटबाजी से लेकर संगठन में इन चीजों पर हो सकते हैं कड़े सुधार

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राहुल गांधी ने शुक्रवार को हरियाणा कांग्रेस नेताओं के साथ बैठक की और सबकी समस्याओं को सुना। इससे पहले कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने G-23 ग्रुप के सदस्य गुलाम नबी आजाद से मुलाकात की थी।

कांग्रेस पार्टी में आने वाले दिनों में कुछ बड़े बदलाव देखे जा सकते हैं। पांच राज्यों में करारी हार के बाद पार्टी में बदलाव की मांग तेज हो गई है और उसी के मद्देनजर पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी अगले दो हफ्तों में बड़ा फैसला ले सकती हैं। कांग्रेस के अंदर गुटबाजी और आंतरिक कलह एक बड़ी समस्या है जिससे पार्टी को कई बार चुनाव में नुकसान भी उठाना पड़ा है।

साल के अंत में गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। कांग्रेस पार्टी इन चुनावों में एकजुटता दिखाना चाहती है और इसीलिए पार्टी के अंदर असंतोष को जल्द खत्म करने की कोशिश की जा रही है। हाल ही में सोनिया गांधी ने हिमाचल प्रदेश के वरिष्ठ नेताओं के साथ बैठक की थी और उन्हें आपसी गुटबाजी को जल्द खत्म करने की नसीहत भी दी थी। वहीं राहुल गांधी ने शुक्रवार को हरियाणा कांग्रेस नेताओं के साथ बैठक की और सभी को एकजुट रहने की नसीहत भी दी।

कांग्रेस के अंदर राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच मतभेद की खबरें भी सामने आती रहती हैं। एक समय तो ऐसा आया था जब राजस्थान सरकार पर संकट के बादल मंडरा रहे थे। अब कांग्रेस पार्टी इस संकट से भी जल्द निजात पाना चाहती है और इसको लेकर बड़े फैसले लिए जा सकते हैं। वहीं छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल और टीएस सिंह देव के बीच मतभेद भी जल्द सुलझाए जा सकते हैं। कांग्रेस पार्टी का पूरा फोकस राजस्थान और छत्तीसगढ़ में नेताओं के बीच मतभेद सुलझाने का है।

गुजरात और हिमाचल चुनाव से पहले कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव भी होना है। इसके मद्देनजर कांग्रेस जल्द ही संगठन में महासचिवों की नियुक्ति भी कर सकती हैं। कई महासचिव बदले भी जा सकते हैं। करीब 20 फीसदी नए चेहरों को मौका दिया जा सकता है।

आंतरिक कलह से हुआ है खूब नुकसान: कांग्रेस पार्टी को आंतरिक कलह से काफी नुकसान हुआ है। मध्य प्रदेश और पंजाब जीता जागता उदाहरण है। मध्यप्रदेश में सिंधिया और कमलनाथ के बीच मतभेद थे और पार्टी इसे सुलझाने में नाकामयाब रही थी। इसका नतीजा यह था कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार गिर गई थी और सिंधिया ने बीजेपी ज्वाइन कर ली। वहीं पंजाब में भी चरणजीत सिंह चन्नी के प्रति पार्टी नेताओं के असंतोष ने कांग्रेस का नुकसान ही कराया और पंजाब में कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई।

राहुल गांधी ने शुक्रवार को हरियाणा कांग्रेस नेताओं के साथ बैठक की और सबकी समस्याओं को सुना। इससे पहले कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने G-23 ग्रुप के सदस्य गुलाम नबी आजाद से मुलाकात की थी। कांग्रेस पार्टी में आने वाले दिनों में कुछ बड़े बदलाव देखे जा सकते हैं। पांच राज्यों में करारी हार के बाद पार्टी में बदलाव की मांग तेज हो गई है और उसी के मद्देनजर पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी अगले दो हफ्तों में बड़ा फैसला ले सकती हैं। कांग्रेस के अंदर गुटबाजी और आंतरिक कलह एक बड़ी समस्या है जिससे पार्टी को कई बार चुनाव में नुकसान भी उठाना पड़ा है। साल के अंत में गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। कांग्रेस पार्टी इन चुनावों में एकजुटता दिखाना चाहती है और इसीलिए पार्टी के अंदर असंतोष को जल्द खत्म करने की कोशिश की जा रही है। हाल ही में सोनिया गांधी ने हिमाचल प्रदेश के वरिष्ठ नेताओं के साथ बैठक की थी और उन्हें आपसी गुटबाजी को जल्द खत्म करने की नसीहत भी दी थी। वहीं राहुल गांधी ने शुक्रवार को हरियाणा कांग्रेस नेताओं के साथ बैठक की और सभी को एकजुट रहने की नसीहत भी दी। कांग्रेस के अंदर राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच मतभेद की खबरें भी सामने आती रहती हैं। एक समय तो ऐसा आया था जब राजस्थान सरकार पर संकट के बादल मंडरा रहे थे। अब कांग्रेस पार्टी इस संकट से भी जल्द निजात पाना चाहती है और इसको लेकर बड़े फैसले लिए जा सकते हैं। वहीं छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल और टीएस सिंह देव के बीच मतभेद भी जल्द सुलझाए जा सकते हैं। कांग्रेस पार्टी का पूरा फोकस राजस्थान और छत्तीसगढ़ में नेताओं के बीच मतभेद सुलझाने का है। गुजरात और हिमाचल चुनाव से पहले कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव भी होना है। इसके मद्देनजर कांग्रेस जल्द ही संगठन में महासचिवों की नियुक्ति भी कर सकती हैं। कई महासचिव बदले भी जा सकते हैं। करीब 20 फीसदी नए चेहरों को मौका दिया जा सकता है। आंतरिक कलह से हुआ है खूब नुकसान: कांग्रेस पार्टी को आंतरिक कलह से काफी नुकसान हुआ है। मध्य प्रदेश और पंजाब जीता जागता उदाहरण है। मध्यप्रदेश में सिंधिया और कमलनाथ के बीच मतभेद थे और पार्टी इसे सुलझाने में नाकामयाब रही थी। इसका नतीजा यह था कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार गिर गई थी और सिंधिया ने बीजेपी ज्वाइन कर ली। वहीं पंजाब में भी चरणजीत सिंह चन्नी के प्रति पार्टी नेताओं के असंतोष ने कांग्रेस का नुकसान ही कराया और पंजाब में कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई।

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