Punjab Polls 2022: किसान आंदोलन से निकली SSM का चुनावी कैंपेन बेधार, लोग कैंडिडेट्स के नाम तक से अनजान

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पंजाब चुनाव में बठिंडा में अपने निर्वाचन क्षेत्र को लेकर कांग्रेस के मनप्रीत बादल का कहना है कि वह अपने प्रचार अभियान में किसानों के मुद्दे को नहीं देखते। उनका कहना है कि उनकी सीट शहरी है।

वंदिता मिश्रा

कृषि कानूनों के खिलाफ किसान संगठनों का विरोध प्रदर्शन इसकी वापसी तक दिल्ली की सीमाओं पर लगभग एक साल चला। वहीं इस ऐतिहासिक सफलता के बाद किसान संयुक्त किसान मोर्चा से जु़ड़े संगठन चुनावी मैदान में कूद गये। हालांकि चुनाव आगामी 20 फरवरी को होने हैं लेकिन किसान आंदोलन निकली इस पार्टी के उम्मीदवारों के अभियान में लगभग कोई गति दिखाई नहीं दे रही है।

बता दें कि किसान आंदोलन ने लोगों के बीच जिस लोकप्रियता को हासिल किया था, वैसा पंजाब विधानसभा चुनाव में किसान संगठनों के लिए मिलता नहीं दिखाई दे रहा है। पंजाब में साफ तौर पर बदलाव के लिए वोटरों में आम आदमी पार्टी के लिए अच्छे संकेत दिखाई दे रहे हैं।

गौरतलब है कि बलबीर सिंह राजेवाल की अगुवाई वाला संयुक्त समाज मोर्चा (एसएसएम), जिसमें आंदोलन करने वाले संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) के 32 संगठनों में से 22 शामिल हैं। बता दें कि यह मोर्चा आंदोलन को मिले व्यापक समर्थन को वोटों में बदलने के लिए संघर्ष करता देखा जा रहा है। हालांकि जिस उम्मीद से संगठन चुनावी राजनीति में उतरे, वो तेजी अभियान में नहीं देखी जा रही है।

चंडीगढ़ में एसएसएम के मुख्य प्रवक्ता प्रो मंजीत सिंह का कहना है कि 22 यूनियनों के चुनाव में उतरने के बाद भी, कीमती समय बर्बाद हो गया। उन्होंने कहा अरविंद केजरीवाल की आप के साथ सीट समझौते और फिर चुनाव आयोग द्वारा उनकी पाटी के पंजीकरण को लेकर हुई देरी से पूरा समय नहीं मिल सका। अंत में, किसानों को पार्टी और एक आम चुनाव चिह्न नही मिला, जैसी उनकी मांग थी। उन्होंने जानकारी दी कि उनके 92 उम्मीदवारों में से 58 खाट चुनाव चिन्ह पर लड़ रहे हैं।

बठिंडा में अपने निर्वाचन क्षेत्र को लेकर कांग्रेस के मनप्रीत बादल का कहना है कि वह किसानों के मुद्दे को अपने चुनावी अभियान में शामिल नहीं करते हैं, क्योंकि उनकी सीट शहरी है।

अमृतसर पूर्व के हाई-प्रोफाइल निर्वाचन क्षेत्र में कांग्रेस के नवजोत सिंह सिद्धू और शिरोमणि अकाली दल के बिक्रम सिंह मजीठिया के खिलाफ भाजपा के उम्मीदवार आईएएस अधिकारी से नेता बने जगमोहन सिंह राजू भी किसान आंदोलन या कृषि संकट की बात नहीं करते हैं। उनका कहना है कि “लोग ड्रग्स और बुनियादी ढांचे की बात करते हैं। पिछले 10 दिनों में एक भी व्यक्ति ने किसान आंदोलन को लेकर मुझसे नहीं पूछा।”

संगरूर जिले के बलाद कलां गांव के रविदास्सी मुहल्ले में अर्शदीप कौर कहती हैं, ”अपने हक के लिए लड़ना अच्छा है। किसानों ने यह किया भी लेकिन हमें क्या मिला? हम सारा दिन खेतों में काम करते हैं, लेकिन जब सबकी तनख्वाह बढ़ती है, तो हमारा वेतन वही रहता है।”

पंजाब चुनाव में कई जगहों पर लोगों को एसएसएम उम्मीदवारों के नाम भी नहीं पता हैं। राजेवाल के निर्वाचन क्षेत्र सिंघू में लगभग दो महीने तक डेरा डाले रहने वाले 69 वर्षीय जमींदार उजागर सिंह कहते हैं कि मेरा अपना वोट राजेवाल के लिए है, लेकिन मैं देख सकता हूं कि लोग मेरे गांव में पुराने राजनीतिक दलों में वापस चले गए हैं। यहां मुकाबला शिरोमणि अकाली दल और आप के बीच है। ऐसे में एसएसएम तीसरे स्थान पर जा सकती है।

पंजाब चुनाव में बठिंडा में अपने निर्वाचन क्षेत्र को लेकर कांग्रेस के मनप्रीत बादल का कहना है कि वह अपने प्रचार अभियान में किसानों के मुद्दे को नहीं देखते। उनका कहना है कि उनकी सीट शहरी है। वंदिता मिश्रा कृषि कानूनों के खिलाफ किसान संगठनों का विरोध प्रदर्शन इसकी वापसी तक दिल्ली की सीमाओं पर लगभग एक साल चला। वहीं इस ऐतिहासिक सफलता के बाद किसान संयुक्त किसान मोर्चा से जु़ड़े संगठन चुनावी मैदान में कूद गये। हालांकि चुनाव आगामी 20 फरवरी को होने हैं लेकिन किसान आंदोलन निकली इस पार्टी के उम्मीदवारों के अभियान में लगभग कोई गति दिखाई नहीं दे रही है। बता दें कि किसान आंदोलन ने लोगों के बीच जिस लोकप्रियता को हासिल किया था, वैसा पंजाब विधानसभा चुनाव में किसान संगठनों के लिए मिलता नहीं दिखाई दे रहा है। पंजाब में साफ तौर पर बदलाव के लिए वोटरों में आम आदमी पार्टी के लिए अच्छे संकेत दिखाई दे रहे हैं। गौरतलब है कि बलबीर सिंह राजेवाल की अगुवाई वाला संयुक्त समाज मोर्चा (एसएसएम), जिसमें आंदोलन करने वाले संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) के 32 संगठनों में से 22 शामिल हैं। बता दें कि यह मोर्चा आंदोलन को मिले व्यापक समर्थन को वोटों में बदलने के लिए संघर्ष करता देखा जा रहा है। हालांकि जिस उम्मीद से संगठन चुनावी राजनीति में उतरे, वो तेजी अभियान में नहीं देखी जा रही है। चंडीगढ़ में एसएसएम के मुख्य प्रवक्ता प्रो मंजीत सिंह का कहना है कि 22 यूनियनों के चुनाव में उतरने के बाद भी, कीमती समय बर्बाद हो गया। उन्होंने कहा अरविंद केजरीवाल की आप के साथ सीट समझौते और फिर चुनाव आयोग द्वारा उनकी पाटी के पंजीकरण को लेकर हुई देरी से पूरा समय नहीं मिल सका। अंत में, किसानों को पार्टी और एक आम चुनाव चिह्न नही मिला, जैसी उनकी मांग थी। उन्होंने जानकारी दी कि उनके 92 उम्मीदवारों में से 58 खाट चुनाव चिन्ह पर लड़ रहे हैं। बठिंडा में अपने निर्वाचन क्षेत्र को लेकर कांग्रेस के मनप्रीत बादल का कहना है कि वह किसानों के मुद्दे को अपने चुनावी अभियान में शामिल नहीं करते हैं, क्योंकि उनकी सीट शहरी है। अमृतसर पूर्व के हाई-प्रोफाइल निर्वाचन क्षेत्र में कांग्रेस के नवजोत सिंह सिद्धू और शिरोमणि अकाली दल के बिक्रम सिंह मजीठिया के खिलाफ भाजपा के उम्मीदवार आईएएस अधिकारी से नेता बने जगमोहन सिंह राजू भी किसान आंदोलन या कृषि संकट की बात नहीं करते हैं। उनका कहना है कि “लोग ड्रग्स और बुनियादी ढांचे की बात करते हैं। पिछले 10 दिनों में एक भी व्यक्ति ने किसान आंदोलन को लेकर मुझसे नहीं पूछा।” संगरूर जिले के बलाद कलां गांव के रविदास्सी मुहल्ले में अर्शदीप कौर कहती हैं, ”अपने हक के लिए लड़ना अच्छा है। किसानों ने यह किया भी लेकिन हमें क्या मिला? हम सारा दिन खेतों में काम करते हैं, लेकिन जब सबकी तनख्वाह बढ़ती है, तो हमारा वेतन वही रहता है।” पंजाब चुनाव में कई जगहों पर लोगों को एसएसएम उम्मीदवारों के नाम भी नहीं पता हैं। राजेवाल के निर्वाचन क्षेत्र सिंघू में लगभग दो महीने तक डेरा डाले रहने वाले 69 वर्षीय जमींदार उजागर सिंह कहते हैं कि मेरा अपना वोट राजेवाल के लिए है, लेकिन मैं देख सकता हूं कि लोग मेरे गांव में पुराने राजनीतिक दलों में वापस चले गए हैं। यहां मुकाबला शिरोमणि अकाली दल और आप के बीच है। ऐसे में एसएसएम तीसरे स्थान पर जा सकती है।

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